''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Saturday, May 26, 2012

इक कसम ऐसी भी अब खा ली जाये (गज़ल)



इक कसम ऐसी भी अब खा ली जाये 
जिससे दोस्ती-दुश्मनी संभाली जाये 

टूटी तस्वीर से आंसू टपकते देखकर 
किसी कलंदर की दुआएं बुला ली जाये 

अब कोई ताल्लुक न रहा उसका मुझसे
हो सके इश्क की अफवाहें दबा ली जाये 

खबर है तूफां जानिबे-समंदर निकले हैं 
वक़्त पर टूटी कश्तियाँ सजा ली जाये 

इन्तजारे-यार की भी हद होती है 'हरीश' 
थकी आँखें इक रात को सुला ली जाये 

1 comment:

  1. वक्त रहते सब ठीक कर लिया
    तो अच्छा है..
    बहुत ही सुन्दर गजल:-)

    ReplyDelete

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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