''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Saturday, May 12, 2012

नफरतों की गुस्ताखी (ख्वाबों से बनी गजल)



जिंदगी के मसलों की ज़ीनत जरुरी है 
जागीरे-बख्शीस की कीमत जरुरी है...

नफरतों की गुस्ताखी हर रोज करता हूं
मुहब्बत करने को तो फुर्सत जरुरी है... 

जंग का मैदान जख्मे-जमीं हो गया 
अब अमनौ-चैन की हरकत जरुरी है...

आँख का मतलब नहीं हर वक़्त रोया जाय 
अश्क की बारिश को फुरकत जरुरी है... 

मुहब्बत का खेल तू न खेल पायेगा'हरीश'
इस हुनर के खेल में शौहरत जरुरी है...


जिंदगी के मसलों की ज़ीनत जरुरी है 
जागीरे-बख्शीस की कीमत जरुरी है...

2 comments:

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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