''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Saturday, April 18, 2015

बूढी मां की बाहों में फिर बिखर जाऊं (GAZAL)

दर्द के बादल पिघलते नहीं
चांद बचपन के ढलते नही
 
खिलौने बदतमीज हो गये है
चाबी ना भरुं तो चलते नहीं
 
किताबों से बस्ते फट भी गये
आज पैसों से झोले भरते नहीं
 
बूढी मां की बाहों में फिर बिखर जाऊं
खिलौने टूट गये है बचपन भूलते नहीं
 
अांगन में तितलियां अब कहां आती हैं
'हरि'बरसात होती नहीं फूल खिलते नहीं

Friday, April 17, 2015

अंत नहीं आरम्भ लिखूंगा



अंत नहीं आरम्भ लिखूंगा
फ़ुर्सत में प्रारंभ लिखूंगा

ख्वाहिश में विश्वास लिखूंगा
आस नहीं प्रयास लिखूंगा

क्रांति का आकार लिखूंगा
शून्य नहीं विस्तार लिखूंगा

इन्कलाब को पत्र लिखूंगा
शास्त्र नहीं मैं शस्त्र लिखूंगा

फ़ितरत के विरुद्ध लिखूंगा
छाँव नहीं मैं धूप लिखूंगा

हर मुमकिन तूफान लिखूंगा
धार नहीं मंझधार लिखूंगा

 अंत नहीं आरम्भ लिखूंगा
फ़ुर्सत में प्रारंभ लिखूंगा

Thursday, April 16, 2015

मैं अन्तर्मन तेरा (ग़ज़ल )


मैं अन्तर्मन तेरा, मैं ख़्वाब भी तेरा हूँ
 विश्वास करो मेरा, मैं साँझ सवेरा हूँ
बनजारें भी अब तक, घर लौट गये होंगे
मैं बीच रास्ते का, लूट गया जो डेरा हूँ
कुछ दर्द उधारी के, कुछ अश्क़ मुनाफे के
मैं इश्क़ का राजा हूँ, जो कुछ हूँ तेरा हूँ
 कुछ छिपे हुये राजों की, बात क्या करनी
नफ़रत के नकाबों में, मैं प्रेम का चेहरा हूँ
मैं फूल बगीचों का, शबनम में नहाया हूँ
काँटों में जिन्दा हूँ, खुश्बू का लूटेरा हूँ
'हरि' स्याह अँधेरे की, परछाई मेरी तस्वीर
इक रात हुआ रौशन, जुगनू का बसेरा हूँ

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