''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Thursday, April 16, 2015

मैं अन्तर्मन तेरा (ग़ज़ल )


मैं अन्तर्मन तेरा, मैं ख़्वाब भी तेरा हूँ
 विश्वास करो मेरा, मैं साँझ सवेरा हूँ
बनजारें भी अब तक, घर लौट गये होंगे
मैं बीच रास्ते का, लूट गया जो डेरा हूँ
कुछ दर्द उधारी के, कुछ अश्क़ मुनाफे के
मैं इश्क़ का राजा हूँ, जो कुछ हूँ तेरा हूँ
 कुछ छिपे हुये राजों की, बात क्या करनी
नफ़रत के नकाबों में, मैं प्रेम का चेहरा हूँ
मैं फूल बगीचों का, शबनम में नहाया हूँ
काँटों में जिन्दा हूँ, खुश्बू का लूटेरा हूँ
'हरि' स्याह अँधेरे की, परछाई मेरी तस्वीर
इक रात हुआ रौशन, जुगनू का बसेरा हूँ

2 comments:

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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