मै अपनी बात करने का मिजाज़ नहीं रखता मुझे अपनों की बाते करना अच्छा लगता है। सहूलियत रहती है दुःख दर्द बाँटने में। आज फिर किसी अपने की याद आई तो लिखने बैठ गया । ना जाने क्यों गुजरे पलों की अहमियत हर रोज बढ़ती ही जाती है। लोग जाने अनजाने में मिलते है बिछुड़ते है और फिर सफ़र शुरू होता है यादों का। परिंदों की मानिंद मुझे भी हक था खुले आसमान में पंख पसारने का। आजादी का मै भी शौक़ीन रहा हूँ ,पर हर रोज आसमान मन मुताबिक खुला नहीं मिलता विचरने को। किसी न किसी दिन कमबख्त यादों के बादल आ ही जाते है। कुछ भूली बिसरी यादें तो कुछ अनसुलझे शिकवें हर किसी की दिनचर्या का अहम् हिस्सा रहे है और मै तो इनसे अछूता रह ही नहीं सकता.
मंजिलों की दूरियों से मैं वाकिफ था मगर
हर पत्थर मेरी राह का ठोकर रहा है.....!
.....आज बस इतना ही! वक़्त मिला तो और लिखने की सोचेंगे।