गर तू हो करीब मेरे मजा आ जाये
ये कोलाहल ये बेहिसाब शोर-शराबा
शहर में हो कोई गांव मजा आ जाये
मेरे जनाजे को सजाने से पहले उसे
मेरी कसम याद दिला दो मजा आ जाये
तेरी नज़रों से दूर चला भी जाऊं चुपचाप
अब और कितना उसे याद करूं 'हरीश'
तेरी नज़रों से दूर चला भी जाऊं चुपचाप
एक बारगी तू कह दे तो मजा आ जाये
अब और कितना उसे याद करूं 'हरीश'
रफ्ता-रफ्ता भूल ही जाऊं मजा आ जाये
कुछ तो हो बहाना कि मजा आ जाये
गर तू हो करीब मेरे मजा आ जाये...!
मज़ा आ गाय जी बिलकुल मज़ा आ गया ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - लीजिये पेश है एक फटफटिया ब्लॉग बुलेटिन
बहुत बढ़िया...............
ReplyDeleteवाकई मज़ा आ गया......
सादर
अनु
आपकी रचना पढ़ते -पढ़ते मजा आ गया
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
वाह ...बहुत खूब।
ReplyDeletewah ji wah
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