''कोई
कसक दिल में दबी रह गयी ...!'' ऐसे गीत मुझसे गाये नहीं जाते हा मगर दिल
के ज़ज्बात अक़सर अल्फाजों की शक्ल-औ-सूरत अख्तियार कर ही लेते है ...मगर यही
मेरी बेबसी है और मेरी अनकही आरज़ू भी ...आज मुल्क के हालात के लिए अगर मैं
बेबस हूँ तो मेरे अल्फाज़ भी...!
'ज़श्न -ऐ-आज़ादी' से क्या होगा...! (नयी ग़ज़ल)
'ज़श्न -ऐ-आज़ादी' से क्या होगा
अंजुमन-ऐ-गवाही से क्या होगा...
ये गुलिस्ताँ अब क़ुरबानी मांगता है
सिर्फ खूं की निशानी से क्या होगा...
हो कोई ज़िक्र-ऐ-जलवा तो शमशीर उठे
गीत गाती नौजवानी से क्या होगा...
ये पुरानी दीवारों के ढहने का वक़्त है 'हरीश'
महज मरम्मत-ऐ-बाज़ारी से क्या होगा...!!
'ज़श्न -ऐ-आज़ादी' से क्या होगा...! (नयी ग़ज़ल)
'ज़श्न -ऐ-आज़ादी' से क्या होगा
अंजुमन-ऐ-गवाही से क्या होगा...
ये गुलिस्ताँ अब क़ुरबानी मांगता है
सिर्फ खूं की निशानी से क्या होगा...
हो कोई ज़िक्र-ऐ-जलवा तो शमशीर उठे
गीत गाती नौजवानी से क्या होगा...
ये पुरानी दीवारों के ढहने का वक़्त है 'हरीश'
महज मरम्मत-ऐ-बाज़ारी से क्या होगा...!!
बढ़िया...
ReplyDeleteजी शुक्रिया!
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