''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Wednesday, May 23, 2012

चाँद भी तेरे हुस्न का गर दीवाना हो जाये (जिन्दा ग़ज़ल)


मुहब्बत का तिलिस्मी अफ़साना हो जाये 
चाँद भी तेरे हुस्न का गर दीवाना हो जाये 

इस नादान दिल को सुकूँ भी मिल जायेगा  
हर रोज तेरा मेरे घर आना जाना हो जाये 

ये लंबा सफ़र है जीने का आखरी सांस तक  
जिंदगी को लम्हों में बांटकर जीना हो जाये 

अब मजे की बात नहीं रही तेरी मुहब्बत में 
हो सके तो तेरा रूठना मेरा मनाना हो जाये 

खुद के साये पर हरगिज़ एतबार न करो 'हरीश' 
अँधेरे में हमें रुकना हो तो ये रवाना हो जाये 

7 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति ।

    आभार ।।

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  2. बहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है ... इस नादान दिल कों सकून मिल जाए ... ये शेर बहुत पसंद आया ...

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  3. बहुत उम्दा ग़ज़ल बहुत खूब

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  4. अब मजे की बात नहीं रही तेरी मुहब्बत में
    हो सके तो तेरा रूठना मेरा मनाना हो जाये
    ........बहुत उम्दा !!!

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  5. सुंदर गजल...
    हार्दिक बधाई

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  6. दिल की तह से आप सभी को शुक्रिया...

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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