दर्द के बादल पिघलते नहीं
चांद बचपन के ढलते नही
खिलौने बदतमीज हो गये है
चाबी ना भरुं तो चलते नहीं
किताबों से बस्ते फट भी गये
आज पैसों से झोले भरते नहीं
बूढी मां की बाहों में फिर बिखर जाऊं
खिलौने टूट गये है बचपन भूलते नहीं
अांगन में तितलियां अब कहां आती हैं
'हरि'बरसात होती नहीं फूल खिलते नहीं
क्या बात है .......बचपन पर सहज और सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसच है हरीश जी "अांगन में तितलियां अब कहां आती हैं"
ReplyDeleteआपकी यादों के झरोखे ने कई यादें ताज़ा कर दीं।
सुन्दर प्रस्तुति