''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Monday, August 26, 2013

हंसी गुम थी उदास दिख रहा था कुछ कुछ (ग़ज़ल)

कोरे कागज़ पर तू लिख रहा था कुछ कुछ
हंसी गुम थी उदास दिख रहा था कुछ कुछ

खुश तो था कि दुआएं मुकम्मल हुयी थी
फिर भी मन ही मन चिढ़ रहा था कुछ कुछ

थोड़े आंसू गिरे थे मेरे हर सवाल पर
कागज़े दिल तेरा भीग रहा था कुछ कुछ

एक झोंका हवा का गुजर भी गया
सुर्ख पत्ता अभी भी हिल रहा था कुछ कुछ

फ़ासलें मिट रहे थे देखो दूर क्षितिज़ में
जमीं से आसमां मिल रहा था कुछ कुछ

बरसों पहले जो दी थी मुहब्बत की निशानी
वो फुल गुलाब का खिल रहा था कुछ कुछ

बोली लगने से पहले ये हुआ था 'हरीश'
तेरे बाज़ार में मैं बिक रहा था कुछ कुछ 

6 comments:

  1. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} किसी भी प्रकार की चर्चा आमंत्रित है दोनों ही सामूहिक ब्लौग है। कोई भी इनका रचनाकार बन सकता है। इन दोनों ब्लौगों का उदेश्य अच्छी रचनाओं का संग्रहण करना है। कविता मंच पर उजाले उनकी यादों के अंतर्गत पुराने कवियों की रचनआएं भी आमंत्रित हैं। आप kuldeepsingpinku@gmail.com पर मेल भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। प्रत्येक रचनाकार का हृद्य से स्वागत है।

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  2. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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    Replies
    1. जन्माष्टमी की आपको भी शुभ शुभकामनाएं जय श्री राधे कृष्ण

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  3. शुक्रिया सर जय श्री राधे कृष्ण

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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