कुछ रात मयखाने में आराम हो जाये
हम उनसे ये कहकर घर से निकले थे 
इंतजार ना करना चाहे शाम हो जाए 
वो इतना हसीं है की गम न होगा गर
उससे मुहब्बत करके बदनाम हो जाए 
क्यू करे मुहब्बत छुप-छुपकर जहाँ से 
हर राज बेनकाब सरे-आम हो जाए 
इक मुलाकात उनसे जरुरी है 'हरीश'
चलते-चलते आखिरी सलाम हो जाए 

वाह वाह ||
ReplyDeleteबहुत ही शानदार गजल.....:-)
101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
ReplyDeleteएक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteवह क्या बात है ... इंतज़ार न करना चाहे शाम हो जाये ... बहुत लाजवाब गज़ल ..
ReplyDeleteलाजवाब गजल ....बहुत खूब लिखा है आपने...
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