मेरा नाम  उनकी  जुबान पर है 
जैसे कोई दरिया उफ़ान पर है
 
जैसे कोई दरिया उफ़ान पर है
इस बस्ती के लोगों के उसूल मत पूछो 
पैर जमीं पे इरादे आसमान पर है
 
पैर जमीं पे इरादे आसमान पर है
वारदाते-क़त्ल उनके शहर में हुई 
मगर इल्जाम मुझ सुल्तान पर है
 
मगर इल्जाम मुझ सुल्तान पर है
हारे हुए सिकंदरों को कौन पूछता है 'हरीश'
फतह के तमाम झंडे मेरे मकान पर है
फतह के तमाम झंडे मेरे मकान पर है
 मेरा नाम उनकी जुबान पर है 
जैसे कोई दरिया उफ़ान पर है......!!
जैसे कोई दरिया उफ़ान पर है......!!
 
 

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय पहेली चर्चा चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteशुक्रिया रविकरजी...!
Deleteहारे हुए सिकंदरों को कौन पूछता है
ReplyDeleteफतह के तमाम झंडे मेरे मकान पर है
लाजवाब शेर है इस उम्दा गज़ल का ... बहुत खूब ...
शुक्रिया जनाब...!
Deleteबढ़िया रचना!
ReplyDeleteVery nice...
ReplyDelete