''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Friday, April 17, 2015

अंत नहीं आरम्भ लिखूंगा



अंत नहीं आरम्भ लिखूंगा
फ़ुर्सत में प्रारंभ लिखूंगा

ख्वाहिश में विश्वास लिखूंगा
आस नहीं प्रयास लिखूंगा

क्रांति का आकार लिखूंगा
शून्य नहीं विस्तार लिखूंगा

इन्कलाब को पत्र लिखूंगा
शास्त्र नहीं मैं शस्त्र लिखूंगा

फ़ितरत के विरुद्ध लिखूंगा
छाँव नहीं मैं धूप लिखूंगा

हर मुमकिन तूफान लिखूंगा
धार नहीं मंझधार लिखूंगा

 अंत नहीं आरम्भ लिखूंगा
फ़ुर्सत में प्रारंभ लिखूंगा

11 comments:

  1. इन्कलाब को पत्र लिखूंगा
    शास्त्र नहीं मैं शस्त्र लिखूंगा... बहुत बढ़िया ..

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  2. क्रान्ति का आकार --------- बहुत सुन्दर प्रेरक रचना 1बधाइ1

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ। ....... ओज रस से परिपूर्ण
    और आपका ब्लॉग बहुत ही बढ़िया है इस ब्लॉग पर आकर वाकई बहुत अच्छा लगा।
    नया और अनोखा। धन्यवाद हरीश जी ।

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  4. बहुत सुन्दर पंक्तिया ..........अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर!

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  5. प्रभावी ... सुन्दर ग़ज़ल के लाजवाब शेर ...

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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