मैं रोते हुए बेबाक चन्द मंजर देख आया हूँ
संभलते हुए बेहिसाब लश्कर देख आया हूँ
काजल से सजी आँखें भी रूठ जाया करती है
पलकों पे सजे अश्कों के दफ्तर देख आया हूँ
इक अरसे बाद हंसा है वो तो कोई बात जरुर है
वरना उसे सिसकते हुए मैं अकसर देख आया हूँ
मैं डूबते हुए सूरज से शिकायत करता भी तो कैसे 'हरीश'
हर साँझ मुस्कुराते हुए उसे अपने घर देख आया हूँ...!
इक अरसे बाद हंसा है वो तो कोई बात जरुर है
ReplyDeleteवरना उसे सिसकते हुए मैं अकसर देख आया हूँ
बहुत खूब......
तह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteवाह! खुबसूरत ग़ज़ल!
ReplyDeleteतह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteमैं डूबते हुए सूरज से शिकायत करता भी तो कैसे
ReplyDeleteहर साँझ मुस्कुराते हुए उसे अपने घर देख आया हूँ...!वाह
तह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteवाह बहुत सुंदर गहन भावव्यक्ति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteतह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteशोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
ReplyDeleteप्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
तह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteबहुत खूबसूरत गजल
ReplyDeleteतह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteकाजल से सजी आँखें भी रूठ जाया करती है
ReplyDeleteपलकों पे सजे अश्कों के दफ्तर देख आया हूँ
बहुत खूबसूरत गजल.
बधाई.
तह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
Deleteतह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत कमेन्ट जरुरी था
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