वो ग़मज़दा है मगर मुसकुरा के बात करता है
ये उसका सलीका हैं सलीके से बात करता है ...
न जाने क्यूँ वक़्त कमबख्त ठहर जाता है
वो जब भी मिलता है कुछ करामात करता है ...
मैंने बंजर जमीं में गुलाबों की फसल बोई है
दरियादिल है तू जो बेवक़्त बरसात करता है ...
वक़्त मिले गर तो खुदा से मुहब्बत भी कर लूं 'हरीश'
ये बात और है कि वो मुझसे मुहब्बत दिन-रात करता है...
वो ग़मज़दा है मगर मुसकुरा के बात करता है
ये उसका सलीका हैं सलीके से बात करता है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
आपकी तथाकथित उपस्थिति भी प्रेरणादायी है भाई सा...
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