''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

Recent News

LATEST:

Wednesday, August 21, 2013

मैंने देखा है मुहब्बत के गुलाबों का अंजाम...(नयी ग़ज़ल)


किसी  रोज़ जिंदगी  बिखर जाएगी
उड़ती पतंगे आसमां से उतर जाएगी

इस ओर कुछ दूरियाँ ज़ायज हैं वर्ना
उस ओर मुहब्बत की खबर जाएगी

मैंने देखा है मुहब्बत के गुलाबों का अंजाम
अश्कों में नहलाकर किताब निगल जाएगी

इस बुढ़ापे में इश्क की ख़ता न करो दोस्त
ज़ात-ऐ-बुजुर्ग बे आबरू होकर जाएगी

गज़लें गाकर देख दिन के उजालों में 'हरीश'
तेरे ख्वाबों में तन्हा मेरी रातें उतर जाएगी

2 comments:

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Wordpress Gadgets