''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

Recent News

LATEST:

Saturday, August 17, 2013

मेरे गांव के पंछी साँझ को घर नहीं लौटते....(नयी ग़ज़ल)

  नासाज  तबियत थोड़ी  ठीक हो जाय
 आओ  हम  ग़म में चूर चूर  हो जाय

बंजारों से कह दो हम उनसे वाबस्ता नहीं
ये दिन आराम के है तो कुछ आराम हो जाय 

वक़्त कहता है कोई नयी दुनिया बसा ले
तुम जमीं हो जाओ  हम आसमां हो जाय

मेरे गांव के पंछी साँझ को घर नहीं लौटते
जरुरी है तेरे गांव का रिश्ता मेरे गांव से हो जाय

किसी दिन हम भी तेरे गीत गाकर देखेंगे 'हरीश'
फ़िकर नहीं दुनिया दोस्त हो जाय दुश्मन हो जाय

2 comments:

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Wordpress Gadgets