महज़ एक अधकचरी किलकारी
और सफ़र शुरू
जिंदगी का...!
जीवंत सांसों का
खुले आसमानों का
रंगों का
बारिशों का
अपनों का -परायों का
होंसलों का
अफसानों का
शबनमी कली का
सफ़र जिंदगी का....!
शुरूआती सफ़र की रफ़्तार
मुकम्मल नहीं होती
लडखडाती हुई
गिरती-पड़ती हुई
अँगुलियों के सहारे चलने वाली
रोते-हँसते हुए सिखने वाली
होती है रफ़्तार
और अनुभव भी कच्चा होता है
जैसे बुलबुलों का हार...!
सफ़र आगे बढ़ता है
शब्दों-अक्षरों में खो जाने को
किताबों में गैर जिंदगियां पढता है
हंसती हुयी- बिलखती हुयी
खुद को रफ़्तार देने के लिए
कुछ सीखना पड़ता है...!
एकाएक सफ़र के
अधूरे होने का आभास होता है
कुछ सीखना पड़ता है...!
एकाएक सफ़र के
अधूरे होने का आभास होता है
हमसफ़र की तलाश रहती है
मस्ती रहती है
मौज रहती है
उतार-चढाव
टेढ़े-मेढे मोड़ों की तादात रहती है
हमसफ़र के साथ
फिर रफ़्तार बुलंदीयों पर
ऊँचे आसमानों पर रहती है
नयी शाखें,नयी कलियाँ फूटती है
खुशबू से ओतप्रोत
गुलाब बनने को
और सफर बढ़ता है
वक़्त की आजमायिशों पर...!
रफ्ता-रफ्ता
सफ़र फिर लडखडाता है
मगर थामने के लिए
अब अंगुलियाँ नहीं होती
छड़ियाँ होती है
सांसें अटकने का आभास होता है
जिंदगी का आलिशान महल
अनुभवों की बिरादरी के साथ
ढहने को होता है
इस तरह जिंदगी का सफ़र ख़त्म होता है
शून्य में...!
मस्ती रहती है
मौज रहती है
उतार-चढाव
टेढ़े-मेढे मोड़ों की तादात रहती है
हमसफ़र के साथ
फिर रफ़्तार बुलंदीयों पर
ऊँचे आसमानों पर रहती है
नयी शाखें,नयी कलियाँ फूटती है
खुशबू से ओतप्रोत
गुलाब बनने को
और सफर बढ़ता है
वक़्त की आजमायिशों पर...!
रफ्ता-रफ्ता
सफ़र फिर लडखडाता है
मगर थामने के लिए
अब अंगुलियाँ नहीं होती
छड़ियाँ होती है
सांसें अटकने का आभास होता है
जिंदगी का आलिशान महल
अनुभवों की बिरादरी के साथ
ढहने को होता है
इस तरह जिंदगी का सफ़र ख़त्म होता है
शून्य में...!
Wah,Behtareen...
ReplyDeletePuri zindagi ka safarnama prastut kar diya aapne to...bahut khoob
www.poeticprakash.com
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....!
धन्यवाद @प्रकाशजी...@भास्करजी....
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