समंदर भी हूँ दरिया भी हूँ गर तू डूबने का शौक रखता है
खुली किताब की तरह हूँ मैं गर तू पढने का शौक रखता है
ये नौबत भी आएगी इक दिन कि रह न पायेगा मेरे बगैर
मैं गुलाब बन जाऊंगा गर तू खुशबू का शौक रखता है
सिलसिला जारी है मेरा आग से मुलाकातों का आजकल
मैं मुहब्बत बन जाऊंगा गर तू जलने का शौक रखता है
मुशायरों से वाकिफ हूँ तालियों कि तिस्नगी भी जानी है
मैं ग़ज़ल बन जाऊंगा गर तू गुनगुनाने का शौक रखता है
होश में आने के लिए मैं अकसर अकेले ही शराब पीता हूँ 'हरीश'
मैं हुजूम-ऐ-मस्ती बन जाऊंगा गर तू मैखाने का शौक रखता है
खुली किताब की तरह हूँ मैं गर तू पढने का शौक रखता है
ये नौबत भी आएगी इक दिन कि रह न पायेगा मेरे बगैर
मैं गुलाब बन जाऊंगा गर तू खुशबू का शौक रखता है
सिलसिला जारी है मेरा आग से मुलाकातों का आजकल
मैं मुहब्बत बन जाऊंगा गर तू जलने का शौक रखता है
मुशायरों से वाकिफ हूँ तालियों कि तिस्नगी भी जानी है
मैं ग़ज़ल बन जाऊंगा गर तू गुनगुनाने का शौक रखता है
होश में आने के लिए मैं अकसर अकेले ही शराब पीता हूँ 'हरीश'
मैं हुजूम-ऐ-मस्ती बन जाऊंगा गर तू मैखाने का शौक रखता है
होश में आने के लिए मैं अकसर अकेले ही शराब पीता हूँ 'हरीश'
ReplyDeleteमैं हुजूम-ऐ-मस्ती बन जाऊंगा गर तू मैखाने का शौक रखता है
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं..लाजवाब पोस्ट |
उम्दा गज़ल. हर शेर पर दाद है.
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteवाह वाह हर शेर खुबसूरत शेर दाद को मुहताज नहीं , बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्तों....!
ReplyDeleteकमसिन है मेरे शब्द मेरी सुनते नहीं...इश्क की बातें करू तो खुद मुझे चिढाने लग जाते है...
बहुत खूब
ReplyDeleteलाजवाब शेर.