आँखों की भीगी पलकें
अब बंद नहीं होती
ख्वाबों के लिए...
काश वो ख्वाब न देखा होता
अश्कों का जलजला न होता
आँखों में आज
न होती तनहा रातें
न वफ़ा पे रोना आता...
मगर मैं रोक न पाया खुद को
नादान था शायद
हल्के रंगों से
इन्द्रधनुषी ख्वाब बुनने चला था,
वो ख्वाब भले बेवफा था
मगर हसीन भी कम न था,,,
आहिस्ता-आहिस्ता
मैं जब भी करवट बदलता हूँ
वो बातें उसकी वफ़ा की
वो दुलार रहमतों का
अब देखने नहीं देता
कोई खूबसूरत ख्वाब...
सब रह गया पीछे
किसी बरगद की छांव में जैसे
कारवां चलता ही गया
बेफिक्री में
अनजान सफ़र पर
और मुहब्बत दम तोड़ गयी
शातिर कसमों की
अल्लहड़,
भोली पनाहों में...
आँखों की भीगी पलकें
अब बंद नहीं होती
ख्वाबों के लिए...!!
bahut khoob...
ReplyDeleteबहुत खूब बढ़िया लगी आपकी यह रचना ... आभार मेरे सुझाव पर अमल करने के लिए ... कल एक बात कहना भूल गया था ... वर्ड वेरिफिकेशन अगर जरुरी ना हो तो हटा भी सकते है ... वैसे भी मुझे पूरा यकीन है आपकी रचनाओ पर कोई भी उलजलूल कमेन्ट नहीं करेगा .. ;-)
ReplyDeleteवाह ... आपने तो वर्ड वेरिफिकेशन पहले ही हटा दिया है ... जय हो !
ReplyDeleteशुक्रिया कौशलजी..
ReplyDeleteऔर शिवम् जी आप जैसे प्रियवर तो अनुकरणीय है चटक रंगों की क्या बिसात की आड़े आ जाये...
अब रहा मसला वर्ड वेरिफिकेशन के मटियामेट का तो वो मैं दीदी 'रश्मि प्रभाजी' के सुझावानुसार सुबह ही कर चूका था,
ये मसला मेरी जानकारी में पहले नहीं था वरना ऐसी बंदिशे मैं न रखता मेरा भी ये मानना है की झंझावातों की हदें ख्यालों की सार-संभाल के लिए नहीं रखनी चाहिए...:)
ज़बरदस्त!
ReplyDeleteआहिस्ता-आहिस्ता
ReplyDeleteमैं जब भी करवट बदलता हूँ
वो बातें उसकी वफ़ा की
वो दुलार रहमतों का
अब देखने नहीं देता
कोई खूबसूरत ख्वाब...- होता है अक्सर ऐसा ही
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteआँखों की भीगी पलकें
ReplyDeleteअब बंद नहीं होती
ख्वाबों के लिए...!!
बेहतरीन भाव संयोजन ...
शुक्रिया @शाहनवाज जी
ReplyDelete@दी' रश्मि प्रभा जी
@संजय भास्कर जी
@सदा जी
आपकी अनमोल टिप्पणियों के लिए...आपके द्वारा बख्सी गयी हौसला आफजाई मुझे बेहतरीन परवाज देती रहे हमेशा इसी आशा के साथ...