खुशबूदार केवड़े के उजले फूल की पंखुरी पे बैठी तितली के इन्द्रधनुषी जिस्म की खूबसूरती के जानदार गुमान की जायज़ दरियादिली के चमत्कारों की जादूगरी में डूबी बेहिसाब बेहोशी में पटाक्षेप करने वाले अजीज ख्यालों की सौगातों में निखरी मेरी जज्बाती कलम की स्याही की अंतिम बूँद से जो मैंने आज नए साल की शानदार शान-ओ-शौकत में लिखा वो यह था...''स्याही ख़त्म हो गयी है कल दवात लाना ही होगा''
''जिंदगी जीने के नुस्खों में मुझे ऐतबार नहीं है मैं अपनी जिंदगी बहिस्कारों के साये में जीने की कोशिश करता हूँ।मेरे विचारों की मासूमियत आज भी मुझे ये हक नहीं बख्स्ती की मैं अपनी ही तन्हाईयों से परहेज करू मैं ख्यालों के बिच फ़ासलों में विश्वास हरगिज़ नहीं रखता मैं ऊँची उड़ानों में विश्वास रखता हूँ।''मेरी मर्ज़ी...
Monday, January 2, 2012
स्याही की अंतिम बूँद...
खुशबूदार केवड़े के उजले फूल की पंखुरी पे बैठी तितली के इन्द्रधनुषी जिस्म की खूबसूरती के जानदार गुमान की जायज़ दरियादिली के चमत्कारों की जादूगरी में डूबी बेहिसाब बेहोशी में पटाक्षेप करने वाले अजीज ख्यालों की सौगातों में निखरी मेरी जज्बाती कलम की स्याही की अंतिम बूँद से जो मैंने आज नए साल की शानदार शान-ओ-शौकत में लिखा वो यह था...''स्याही ख़त्म हो गयी है कल दवात लाना ही होगा''
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फिर से एक कतरा ज़िन्दगी का पन्नों पर उतारने के लिए
ReplyDeleteword varification hata dijiye
ReplyDeleteबेशक...!
ReplyDeleteख्वाहिश है की तमाम जिंदगी पन्नों पे ही छाप दूं...!
कोटि कोटि धन्यवाद ''दी''आपको ,मार्गदर्शन के लिए
ReplyDeleteआपके सुझाव के मुताबिक मैंने word varification cancelled कर दिया है...
हर लेखक की तमन्ना ही यही होती है ....
ReplyDeleteजी बिलकूल पल्लविजी मगर मैं अपनी तमन्नाओं की एक नहीं सुनता...बिचारी मेरी तमन्नाएं !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteधन्यवाद भास्कर जी...
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