हो सके तो माफ़ कर या खुद अपने को जुदा कर
पत्थर की मूरत हूँ मैं प्रेम कर या सजदा कर
और कितनी बातें करोगे रूठने मनाने की पर्दों में
वक़्त की ये आरज़ू है अपने आप को बेपर्दा कर
हक की जागीर पत्थरों पे खुदवाने से क्या होगा
बेशकीमती मुहब्बत है तेरी गैरों को फायदा कर
बहुत खा ली है कसमे दिल लगाने की पशोपेश में
अब कुछ यूँ कर कि कसने न खाने का वादा कर
बेशक मुझसे जुदा होकर भी तू जी न पायेगा 'हरीश'
आ बैठ मुझसे अपनी दो-चार साँसों का सौदा कर
हो सके तो माफ़ कर या खुद अपने को जुदा कर
पत्थर की मूरत हूँ मैं प्रेम कर या सजदा कर...!
पत्थर की मूरत हूँ मैं प्रेम कर या सजदा कर
और कितनी बातें करोगे रूठने मनाने की पर्दों में
वक़्त की ये आरज़ू है अपने आप को बेपर्दा कर
हक की जागीर पत्थरों पे खुदवाने से क्या होगा
बेशकीमती मुहब्बत है तेरी गैरों को फायदा कर
बहुत खा ली है कसमे दिल लगाने की पशोपेश में
अब कुछ यूँ कर कि कसने न खाने का वादा कर
बेशक मुझसे जुदा होकर भी तू जी न पायेगा 'हरीश'
आ बैठ मुझसे अपनी दो-चार साँसों का सौदा कर
हो सके तो माफ़ कर या खुद अपने को जुदा कर
पत्थर की मूरत हूँ मैं प्रेम कर या सजदा कर...!
बहुत खा ली है कसमे दिल लगाने की पशोपेश में
ReplyDeleteअब कुछ यूँ कर कि कसने न खाने का वादा कर ...वाह
बहुत बहुत शुक्रिया...!
ReplyDeleteमुहब्बत के सितारे है मेरी कैद में जब जी चाहता है आसमान में एक-दो उछल देता हूँ...!
उम्दा सोच
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
शुक्रिया भास्करजी....
ReplyDeleteआज कुछ इसी हवाएं चली है मेरे शहर में कि हर शख्श पगलाया सा है
बहुत खा ली है कसमे दिल लगाने की पशोपेश में
ReplyDeleteअब कुछ यूँ कर कि कसने न खाने का वादा कर...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति....
ये कसने का मतलब क्या है....क्या ये कसमे है....
बधाई.....