शब्दों की टूटी बैशाखी पर
वो आज भी तय करता है
मीलों की दूरियां
मौसमों की लापरवाही
बेफिक्री में उडाता
वो आज भी गीत गाता है
बरसातों के
बेशक बांसूरी की धून भी साथ नहीं देती
उसके अकेलेपन में
फिर भी
लम्हों का पागलपन
उससे देखा नहीं जाता...।
वो आज भी तय करता है
मीलों की दूरियां
मौसमों की लापरवाही
बेफिक्री में उडाता
वो आज भी गीत गाता है
बरसातों के
बेशक बांसूरी की धून भी साथ नहीं देती
उसके अकेलेपन में
फिर भी
लम्हों का पागलपन
उससे देखा नहीं जाता...।
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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...