सवालों का विद्रोह जवाबों से है
जायज़ फासलों का मंजिलों से है
वो अपने हक की बात करता है अकसर
जिसका विद्रोह खून के रिश्तों से है
रूक जायेगा अब खुशबूओं का सफ़र
काँटों का विद्रोह आज गुलाबों से है
उसकी गली में मैं जाने से कतराता हूँ
जिसका विद्रोह मुस्कुराहटों से है
मैं अपनी आजादी का बहिष्कार क्यों करूं 'हरीश'
मेरा बहिष्कार तो तेरे बहिष्कारों से है....
gazalein jindagi ki kitaabein hai...
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