मजबूरियों की बंदिशों को मै अपनी ढाल बना के जीता हूँ लोग अकसर खुद अपनी जिंदगी को जीने के तरीकों का मशवरा करतें है मैं नहीं करता....
मेरे अपने कायदें है जिंदगी जीने के मै अपनी धून में जीता हूँ किसी की क्या औकात की मेरे अपने होने में कोई खलल बन जायें...
मेरे हिसाब में रातों की सिर्फ तन्हाई नहीं बादलों की सिर्फ गडगडाहट नहीं आंसूओं की सिर्फ बारिशें नहीं जो है तो बस इतना की रातों की ''खूबसूरत'' तन्हाई है बादलों की ''बुलंद'' गडगडाहट है और आंसूओं की ''खनकती रिमझिम'' बारिशें है....
जिंदगी की चादर में परेशानियों के छेद तो होने ही है तो क्या चादर ओढना छोड़ दे हड्डियों को बौखला देने वाली नाजायज ठण्ड में...कदापि नहीं, खुशियों और सहूलियतों की सौदागरी मुझे हरगिज़ पसंद नहीं...
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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...