मैंने झूठ के पैर देखे है
सत्य के नकाब में
चलते देखा है झूठ को दौड़ते देखा है।
खुदा की बेकुसूरी पर
मस्जिदों की दीवारों को
फकीरों ने सिसकते देखा है।
मैंने साँझ के वक़्त
कसमों की फटी चादर में
बुढ़िया को ठण्ड से ठिठुरते देखा है।
पुजारीओं की प्रार्थनाओं में
लोगों की खुशहाली को
बेबस कुचलते देखा है ।
मैंने झूठ के पैर देखे है
सत्य के नकाब में
चलते देखा है झूठ को दौड़ते देखा है....।
सच किसी नवाब की तरह जब तक पैरों में जूते डालता है
ReplyDeleteझूठ पूरी दुनिया की सैर करके आ जाता है ...
शुक्रिया रश्मि जी...
ReplyDeleteआपके अमूल्य कमेंट्स से हम जैसे अनाड़ी ग़ज़लकारों को भी कुछ उम्दा करने का हौसला मिलता रहता है...
चिंता न करिये मेरे अपने हिस्से का झूठ जन्मजात अँधा बहरा और लंगड़ा भी है...