''जिंदगी जीने के नुस्खों में मुझे ऐतबार नहीं है मैं अपनी जिंदगी बहिस्कारों के साये में जीने की कोशिश करता हूँ।मेरे विचारों की मासूमियत आज भी मुझे ये हक नहीं बख्स्ती की मैं अपनी ही तन्हाईयों से परहेज करू मैं ख्यालों के बिच फ़ासलों में विश्वास हरगिज़ नहीं रखता मैं ऊँची उड़ानों में विश्वास रखता हूँ।''मेरी मर्ज़ी...
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शबनम इकठ्ठा कर सिरहाने छुपा रखा है , कभी गीत, कभी कविता ,,,लिख जाती हूँ
ReplyDeleteशुक्रिया..! हम भी ऐसे ही है रश्मि जी छुप छुप के लिखने की कोशिश करते रहते है...
ReplyDeleteजब कवि बने तो डरना क्या ,छुप छुप कर लिखना क्या ......
ReplyDeleteगैरों की नज़र लग सकती थी मेरे हुनर को सुनील जी अगर पर्दा न करता....
ReplyDeleteशुक्रिया आपके अनमोल कमेन्ट के लिए....!!!