''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Tuesday, December 27, 2011

वो आज भी मुस्कुराती तो है...

आज भी उन्हें हमारी याद आती तो है,
उन्ही की परछाई उन्हें सताती तो है,
वो लाख चाहे की हमसे दूर रहे,
मगर मन ही मन हमे चाहती तो है...
फासलें है मुसीबतें भी है दिलों के बिच
मगर वो आज भी मुस्कुराती तो है...
बिलखतें आंसूओं में ही सही
जब भी मिलती है बातें करती तो है..
मैं अकसर अपनी मौज में रहता हूँ
वो अकसर अपनी तन्हाई में रहती तो है...
करते है लोग बातें उसकी मुझसे 'हरीश'
और वो खुद से ही अपनी बात करती तो है.....

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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