''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Friday, December 30, 2011

ये 'पंचों' की चतुराई है या अनाड़ीपन...


आज मैंने जाना धुत्कार क्या होती है, अंधापन क्या होता है, क्या होता है अनाड़ीपन?
आज मेरी आँखों ने जो खून के रिश्तों की बेबसी देखी वो किसी जादूगरी से कम न थी। एकाएक समझदारों का झूंड अनाड़ीपन पे उतर आया। और क्यों न उतरे सच तो सीता की अग्नि परीक्षा में ही जल चूका था। बरसों बीत गये आज तक सच नहीं दिखा और झूठ है की कुलांचें भर रहा है इंसानियत के खेत में, इसी विश्वास के साथ की कोई तो राम बन के आये और पवित्रता का हरण हो। मेरे समाज के तथाकथित ''पंच'' गांव की चौपाल पर किसी संत की मानिंद खड़े बरगद के पेड़ के निचे प्रपंच करते है ''पंचायती'' नहीं करते। ये आज जान के मुझे हैरानी तो हुयी मगर चुप था क्योकि मैं गैरहाजिर था खुद से। एक से जब मैंने पूछा की ''समाज की एकता'' क्या होती है? ''सच का साथ'' क्या है?. बड़ा मझेदार जवाब मिला मुझे उसने कहा ये दोनों तो ''पति-पत्नी'' थे एक अरसा बीत गया समाज के ठेकेदारों ने इन्हें तो गांव-निकाला दे दिया...! अब तो  इनके बारे में बात करना भी इस गांव के पंचों ने ''जुर्म'' घोषित कर रखा है। लगता है आप इस गांव से नहीं हो।आपका भला इसी में है की इस गांव से जल्दी से फूट लो वरना यहाँ का रिवाज सात्विक जुबान काटने का है। मैं भी डर गया जल्दी से खुद को समेटा और ''फूट'' लिया।

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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