''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Thursday, December 29, 2011

ये मेरे रास्तें है...

मैं आज भी
मेरी मंजिलों के बिच
आने वाले पत्थरों पे
तिलक लगाता हूँ, 
सर झुकता हूँ , 
सजदा करता हूँ... 
पहुंचे हुए पीरों की दुत्कारों ने 
मुझे वो रास्तें दिखाएँ है
जिनपर अकसर लोग नहीं जाते 
जहाँ मंजिलें खो जाती है 
अनायास 
पहाड़ों के पार,
नदियों के शालीन मोड़ों पर, 
ये मेरे रास्तें है 
जिनकी मंजिलों से थोड़ी कम बनती है...।

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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