''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

Recent News

LATEST:

Friday, December 30, 2011

वाह! शब्दों की तू-तू मैं-मैं,और ग़ज़ल बन गयी/ ''मैंने यूँही बेशकीमती मुहब्बत फोकट में गवा दी...''


ये शिकवा है मेरा खुदा से की तू खुदा क्यों है ?
मेरी दुआओं का क़त्ल करने पे आमादा क्यों है?

मुझ फकीर ने बहाई है नदियाँ बेहिसाब सजदों की 
तेरी बख्शीशों का समंदर मगर आधा क्यों हैं ?

उसूलों की बैशाखियों का नक़द खरीदार हूँ मैं 
तेरे बाज़ार में अब उधारी का सौदा क्यों है ?


मैंने यूँही बेशकीमती मुहब्बत फोकट में गवा दी 
फिर आशिकों से आंसूओं का तेरा वादा क्यों है? 


मसलों के जनाजें गर तेरे कंधों पे नहीं उठते 'हरीश'
तो सब्र कर,औरों को भी आने दे,चिल्लाता क्यों है?


ये शिकवा है मेरा खुदा से की तू खुदा क्यों है...?
मेरी दुआओं का क़त्ल करने पे आमादा क्यों है...?

2 comments:

  1. मुझ फकीर ने बहाई है नदियाँ बेहिसाब सजदों की
    तेरी बख्शीशों का समंदर मगर आधा क्यों हैं ... वाह

    ReplyDelete
  2. नववर्ष की शुभकामनाएं दीदी जी!

    ReplyDelete

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Wordpress Gadgets