''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Wednesday, December 28, 2011

विद्रोह


सवालों का विद्रोह जवाबों से है 
जायज़ फासलों का मंजिलों से है
वो अपने हक की बात करता है अकसर 
जिसका विद्रोह खून के रिश्तों से है
रूक जायेगा अब खुशबूओं का सफ़र
काँटों का विद्रोह आज गुलाबों से है
उसकी गली में मैं जाने से कतराता हूँ
जिसका विद्रोह मुस्कुराहटों से है
मैं अपनी आजादी का बहिष्कार क्यों करूं 'हरीश'
मेरा बहिष्कार तो तेरे बहिष्कारों से है....

1 comment:

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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