''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Monday, January 2, 2012

स्याही की अंतिम बूँद...



खुशबूदार केवड़े के उजले फूल की पंखुरी पे बैठी तितली के इन्द्रधनुषी जिस्म की खूबसूरती के जानदार गुमान की जायज़ दरियादिली के चमत्कारों की जादूगरी में डूबी बेहिसाब बेहोशी में पटाक्षेप करने वाले अजीज ख्यालों की सौगातों में निखरी मेरी जज्बाती कलम की स्याही की अंतिम बूँद से जो मैंने आज नए साल की शानदार शान-ओ-शौकत में लिखा वो यह था...''स्याही ख़त्म हो गयी है कल दवात लाना ही होगा''

8 comments:

  1. फिर से एक कतरा ज़िन्दगी का पन्नों पर उतारने के लिए

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  2. बेशक...!
    ख्वाहिश है की तमाम जिंदगी पन्नों पे ही छाप दूं...!

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  3. कोटि कोटि धन्यवाद ''दी''आपको ,मार्गदर्शन के लिए
    आपके सुझाव के मुताबिक मैंने word varification cancelled कर दिया है...

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  4. हर लेखक की तमन्ना ही यही होती है ....

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  5. जी बिलकूल पल्लविजी मगर मैं अपनी तमन्नाओं की एक नहीं सुनता...बिचारी मेरी तमन्नाएं !

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  6. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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