कुछ रात मयखाने में आराम हो जाये
हम उनसे ये कहकर घर से निकले थे 
इंतजार ना करना चाहे शाम हो जाए 
वो इतना हसीं है की गम न होगा गर
उससे मुहब्बत करके बदनाम हो जाए 
क्यू करे मुहब्बत छुप-छुपकर जहाँ से 
हर राज बेनकाब सरे-आम हो जाए 
इक मुलाकात उनसे जरुरी है 'हरीश'
चलते-चलते आखिरी सलाम हो जाए 
















