नादाँ बस्ती में जनाजा-ऐ-महबूब की तैयारी है
तुझे भूल भी जाऊं मगर आज ये हालात है मेरे
बिखरी जुल्फों में भी खुशबू का आलम जारी है
बेफिक्र बस्ती में इक फकीर धुनी तपा के बैठ गया
बेसुध खुदा को पाने की उसकी पुरजोर तैयारी है
कुछ न कहना उसे वो हर बात का बुरा मानती है
वो गज़ब की बेशकीमती है वो खुदा की दुलारी है
खेल-ऐ-मुहब्बत में खबरदारी भी जरुरी है 'हरीश'
इसमे जीत भी करारी है इसमे हार भी करारी है
Waaah!
ReplyDeleteशुक्रिया शाह नवाज जी...!
Deleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो
ReplyDeleteशुक्रिया सुनील कुमार जी...!
Deleteखुबसूरत ग़ज़ल , मुबारक हो
ReplyDeleteशुक्रिया उदयवीर सिंह जी ...!
Deleteबेफिक्र बस्ती में इक फकीर धुनी तपा के बैठ गया
ReplyDeleteबेसुध खुदा को पाने की उसकी पुरजोर तैयारी है
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है हरीश जी काफिया और रदीफ़ को सही लेकर चले हैं ये शेर बहुत पसंद आया
शुक्रिया राजेश कुमारीजी ...!
Deletechalo hum bhi gavaah ban gaye.
ReplyDeleteतह-ऐ-दिल से शुक्रिया राजेशजी...आपकी बेशकीमती गवाही के लिए...!
Deleteउम्दा !!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन,,,,,शानदार गजल..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया...