नकाब में हुस्न की मूरत हो तुम
रंगे-खुशबू सी खुबसूरत हो तुम
जिंदगी की बेनजीर जागीर हो
किसी गरीब की दौलत हो तुम
हो उजली ठंडी बूंद बारिश की
बंजर जमीं की जरुरत हो तुम
बुरा मानने का जिक्र क्यों करूं
मीठी-मीठी सी शरारत हो तुम
दर्द का दरिया सुकूं का साहिल
कश्ती में बिखरी मुहब्बत हो तुम
जुल्फों के साये में खुशबू के घर
चांदे-पूनम सी खुबसूरत हो तुम
यूँ कैसे भुला दूं तुम्हे मैं 'हरीश'
रूठी ही सही मेरी किस्मत हो तुम
बहुत ही बढ़िया गजल है ...
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.....:-)
बहुत बढ़िया |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)