दोस्तों!
ग़ज़ल सूफी फकीरों की दौलत है जो शायरों को विरासत में मिली है। ये जागीर ही ऐसी है जिसे हर कोई अपनी मुहब्बत और गमदीदा माहौल में इस्तेमाल करता है। मुहब्बत-गम और शायरी इस जहाँ की एक अटूट तिगडी है जिसकी खूबसूरती का चर्चा वक़्त की पगडंडियों पर सरे-राह होता रहा है...।
              आज अलसुबह हमारा नादाँ दिमाग एक शरारत कर गया और हमें ये ख्याल दे गया की क्यों न आप जैसे फनकारों के साथ एक अल्फाजों का खेल खेला जाय। यह खेल बिलकूल पाक-साफ़ है। हम आपके समक्ष ग़ज़ल का एक ''मिसरा'' सजाने की गुस्ताखी किये जा रहे है जो निहायत एक खुबसूरत जिंदगी जीने का तलबगार है ।इस मिसरे को उम्मीद है की आपका हुनर इसे ग़ज़ल बन जाने तक की जिंदगी बख्स दे...।
''हुनर को इम्तिहानों तक ले चलो
''हुनर को इम्तिहानों तक ले चलो
आशिकों को मयखानों तक ले चलो 
ये मिसरा भी जीने को बेताब सा है दोस्त 
इसे किसी खुबसूरत ग़ज़ल तक ले चलों''
आपको महज करना ये है कि अपने कमेन्ट में काफ़िया और रदीफ़ का ख्याल रखते हुए अगला मिसरा सुपर्दे-खेल करना है....।
आपको महज करना ये है कि अपने कमेन्ट में काफ़िया और रदीफ़ का ख्याल रखते हुए अगला मिसरा सुपर्दे-खेल करना है....।
(विशेष सूचना: आपसे विनम्र गुजारिश है की ये दिल को बहलाने का महज एक खेल है जिसे खेल की मानिंद ही खेलना है...अपशब्दों का इस्तेमाल वर्जित है।)
आपकी दिलनवाजी का अभी से ही शुक्रिया...!
ये है वो मिसरा जिसे जिंदगी की तलब है....
............''चाँद भी तेरे हुस्न का गर दीवाना हो जाये''..............
ये है वो मिसरा जिसे जिंदगी की तलब है....
............''चाँद भी तेरे हुस्न का गर दीवाना हो जाये''..............

चाँद भी तेरे हुस्न का गर दीवाना हो जाए,
ReplyDeleteतो तू जमीं का बेशकीमती खज़ाना हो गए,
मगर दुल्हन चाँद की तुम्हे ना हम बनने देंगे,
खफा हमसे फिर चाहे सारा जमाना हो जाए..
हरीश जी एक मिसरा आपकी खिदमत में पेश करता हूँ, उम्मीद है की आपको पसंद आएगा,
अरुन शर्मा (arunsblog.in)
ईरशाद....ईरशाद...!
ReplyDeleteबहुत खूब अरुण जी..वाकई लाजवाब शेर पेश किया है आपने