ये मुमकिन तो है की तुझे नज़रंदाज़ कर लूं
खफा हो जाऊ कभी खुद से कभी माफ़ कर लूं
तेरी दबी आवाज़ भी सुने एक अरसा बीत गया
हो हुनर तो तेरी आवाज़ को मेरी आवाज़ कर लूं
किस्से मशहूर है लोगो की जुबानी मेरे दिल के
गर बस में होता तो हर किस्से पे ईनाम कर लूं
आज फिर कोई गुमनाम बस्ती में लौट आया हैं 'हरीश'
बिखर के चरणों में गिरुं या पहले आदाब कर लूं
ये मुमकिन तो है की तुझे नज़रंदाज़ कर लूं
खफा हो जाऊ कभी खुद से कभी माफ़ कर लूं
नजरंदाज कर लो-
ReplyDeleteअंदाज अच्छा |
किस्से मशहूर है लोगो की जुबानी मेरे दिल के
ReplyDeleteगर बस में होता तो हर किस्से पे ईनाम कर लूं... वाह
आज फिर कोई गुमनाम बस्ती में लौट आया हैं 'हरीश'
ReplyDeleteबिखर के चरणों में गिरुं या पहले आदाब कर लूं ,,,
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है हरीश जी ... मज़ा आ गया गज़ल का ...
बहुत ही सुन्दर गजल..
ReplyDeleteअंतिम पंक्तिया बहुत अच्छी है..