इक कसम ऐसी भी अब खा ली जाये 
जिससे दोस्ती-दुश्मनी संभाली जाये 
टूटी तस्वीर से आंसू टपकते देखकर 
किसी कलंदर की दुआएं बुला ली जाये 
अब कोई ताल्लुक न रहा उसका मुझसे
हो सके इश्क की अफवाहें दबा ली जाये 
खबर है तूफां जानिबे-समंदर निकले हैं 
वक़्त पर टूटी कश्तियाँ सजा ली जाये 
इन्तजारे-यार की भी हद होती है 'हरीश' 
थकी आँखें इक रात को सुला ली जाये 
वक्त रहते सब ठीक कर लिया
ReplyDeleteतो अच्छा है..
बहुत ही सुन्दर गजल:-)