कोरे पन्नों की किस्मत में एक कहानी ऐसी हो
इतिहासों के सर पर मढ़ते इल्जामों के जैसी हो
ये तब्दिली का मौसम है तब्दिली के बादल हैं
तेरी मेरी सबकी कोशिश ऊजले सावन जैसी हो
ये तब्दिली का मौसम है तब्दिली के बादल हैं
तेरी मेरी सबकी कोशिश ऊजले सावन जैसी हो
बूढी रस्मे तोड़ फेंकना इतना मेरा मकसद है
तेरे मकसद की सूरत भी मेरे मकसद जैसी हो
तड़फ रहा है मुल्क ये अपना जंजीरों के पाशो में
हर जंजीर पर चोट भी गहरी लोहारों के जैसी हो
जुल्मों के साये में जीना बीते कल की बाते है
'हरीश' क्रांति की तैयारी उड़ते बाजों जैसी हो....
वाह...............
ReplyDeleteबूढी रस्मे तोड़ फेंकना इतना मेरा मकसद है
तेरे मकसद की सूरत भी मेरे मकसद जैसी हो
बेहद सशक्त गज़ल...............
अनु
बूढी रस्मे तोड़ फेंकना इतना मेरा मकसद है
ReplyDeleteतेरे मकसद की सूरत भी मेरे मकसद जैसी हो
बहुत खूब है रही यह ऐतिहासिक गजल है ....!
तड़फ रहा है मुल्क ये अपना जंजीरों के पाशो में
ReplyDeleteहर जंजीर पर चोट भी गहरी लोहारों के जैसी हो... waah