''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Friday, May 18, 2012

उसका रूठ जाना तबाही से कम नहीं (ग़ज़ल)

उसका  रूठ  जाना  तबाही से कम नहीं
लिबासे-ख़ामोशी झूठी गवाही से कम नहीं

अब न रोना है उसका  न खिलखिलाना
वो गुजरे लम्हे भी  शायरी से कम नहीं

तमाम उम्र भी कम है  शिकवों के लिए
जिंदगी के शिकवे  जिंदगी से कम नहीं

पंछी  भी उड़ते-उड़ते  दम तोड़ देते है
आसमां की कीमत  जमीं से कम नहीं

अकसर वही बात  लोग किया करते है
जो मुहब्बत की  कहानी से कम नहीं

ख्वाब में खुदा भी मुझसे कह गया'हरीश'
मेरी बंदगी भी   तेरी बंदगी से कम नहीं

3 comments:

  1. सुन्दर शेर....अच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...

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अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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