बिखरी हुई कहानियाँ जिस्मे-अलफ़ाज़ में
आखिरी ख्वाहिश ये मेरी नाम-ऐ-साकी है
तमाम ईंट-ऐ-कब्र नहला दो शराब में
न जाने किसके गले से आगाज़-ऐ-क़त्ल हो
बेहिसाब फिक्रमंद है लोग बिखरी कतार में
बदनामियों का डर महज उनको ही होगा
बदनामियों का डर महज उनको ही होगा
वे अजनबी जो ठहरे है मेरे घर के पास में
ख़त्म हो भी तो कैसे हो परेशानियां 'हरीश'
हर सवाल गमदिदा है तेरे हर जवाब में
बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
ReplyDeleteहर सवाल ग़मदिदा है..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत!
आप सभी साहित्य प्रेमियों को मेरा तहे-दिल से शुक्रिया @ प्रसन्न जी @ शेखर जी @ मधुरेश जी...
ReplyDelete