हम इतना डूबे उसकी चाहत में कि दरिया हो गये
मुहब्बत की बाँहों में सिसककर गम शुकून पाता है
अश्कों में नहाकर बेआबरू तमाम शिकवा हो गये
एक बार जो उसकी खैर ली तो वो लिपट के रो पड़ा
बातों बातों में हम भी गमे-यार के हिस्सेदार हो गये
हर पत्थर को खंगालने की जब-जब भी चली है बात
जाने क्यूँ बेबुनियाद मेरे शहर के मकां परेशां हो गये
अकसर सूखे पत्ते उसी सिम्त फेंक दिए जाते है'हरीश'
जिस किसी सिम्त रवाना अश्कियाँ तूफां हो गये...!
बहुत खूब|||
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन गजल...
एक बार जो उसकी खैर ली तो वो लिपट के रो पड़ा
ReplyDeleteबातों बातों में हम भी गमे-यार के हिस्सेदार हो गये
Wah wah wah
http://blondmedia.blogspot.in/
ReplyDeletemast gajal ,urdu shabdo ka istemaal mast ban pada hai
वाह वाह क्या बात है बहुत लिखा है आपने.... समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/ धन्यवाद....
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