''आज़ाद है मेरी परछाई मेरे बगैर चलने को,,,मै नहीं चाहता मेरे अपनों को ठोकर लगे...ये तो 'वर्तमान की परछाई' है ऐ दोस्त...जिसकी कशमकश मुझसे है...!© 2017-18 सर्वाधिकार सुरक्षित''

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Saturday, May 5, 2012

जुगनुओं की तरह जला जाये (ग़ज़ल)

तेरे हुस्न का किस्सा तेरा कातिल सुना जाये,
बात गर मजे की है बेबाक कुछ तो कहा जाये...!

गैरों के घरों में अपने लोग भी नजर आ जाते हैं 
गली से गुजरते हुए गर बेखौफ झाँका जाये...!

खुद मंजिलें अपनी और लौट सकती है अगर 
अँधेरे सफ़र में भी जुगनुओं की तरह जला जाये...!

ता-उम्र मेरी ये ख्वाहिश जिन्दा रहेगी 'हरीश'
रूठ जाये गर दुनिया तो मुझसे ना रूठा जाये...!

तेरे हुस्न का किस्सा तेरा कातिल सुना जाये
बात गर मजे की है बेबाक कुछ तो कहा जाये...!

2 comments:

  1. ता-उम्र मेरी ये ख्वाहिश जिन्दा रहेगी 'हरीश'
    रूठ जाये गर दुनिया तो मुझसे ना रूठा जाये

    शुभकामनायें ||

    ReplyDelete

अरे वाह! हुजुर,आपको अभी-अभी याद किया था आप यहाँ पधारें धन्य भाग हमारे।अब यहाँ अपने कुछ शब्दों को ठोक-पीठ के ही जाईयेगा मुझे आपके शब्दों का इन्तेजार है...


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